Home > Causes > जब तक वृक्षारोपण का सोशल ऑडिट नहीं होगा वनों के घनत्व में बढ़ोत्तरी असम्भव – सत्येन्द्र सिंह (पर्यावरणविद) एवं सदस्य जिला गंगा संरक्षण समिति -ग़ाज़ियाबाद

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विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण की रक्षा के लिए कुछ सुझाव
प्रत्येक वर्ष वृहद वृक्षारोपड़ अभियान के बावजूद, सही दिशा में, सही तरीके से काम न करने की वजह से वनों का प्रतिशत बढ़ नहीं रहा है। प्रत्येक विभाग को हर वर्ष लाखों वृक्षों को लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है। लेकिन क्या कभी इस बात पर विचार किया गया की अमुक विभाग ने पौधे कहाँ पर और कितने लगाए? और फिर उनकी देखभाल की या नहीं ? लगाए गए पौधों में से कितने पौधे बच पाए ?
जब तक इन प्रश्नों का उत्तर नहीं लिया जायेगा तब तक यह संभव नहीं है। और इसके लिए किसी एन जी ओ या किसी अन्य सक्षम व्यक्ति से सोशल ऑडिट करवाना अति आवश्यक है ताकि पारदर्शिता बनी रहे और यह भी मालूम हो सके की यदि पौधे नहीं पनपे तो उसका क्या कारण था ? और उस कारण को जानकर उसका समाधान किया जा सके। तभी वृक्षारोपण अभियान को गति मिलेगी।
इसके साथ ही टिम्बर वाले पेड़ों को अधिक लगाया जाना चाहिए न की झाड़ वाले पौधों को। हम सही समय पर सही दिशा में वृक्षारोपण करके अपने पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। हमें इसके लिए ऐसे पौधों को लगाना होगा जो ऑक्सीजन अधिक देते है जैसे पीपल , बरगद , पिलखन , इत्यादि।
आपको हम कुछ सुझाव देना चाहते हैं। मेरा विश्वास है की यदि इन सुझावों पर अमल किया जायेगा तो पर्यावरण को बचाने के लिए आपके द्वारा किये जा रहे प्रयासों को काफी मजबूती मिलेगी। मै पिछले लगभग 30 वर्षों से पर्यावरण के लिए कार्य कर रहा हूँ। विभागों के अधिकारी भी कार्य कर रहे हैं लेकिन यदि वही कार्य सही दिशा में होंगे तो उनका फल मिलना अवश्यंभावी है।पर्यावरण एवं प्रकृति का संरक्षण आवश्यक है क्योंकि फूलों का रस चूसने वाले कीट पतंगें नहीं होंगे तो परागण में समस्या होगी जिससे प्राकृतिक रूप से जंगलों में पेड़ नहीं पनपेंगे। वृक्षों की कमी के कारण पहाड़ों में मिट्टी खिसकने की समस्या में भारी वृद्धि होगी एवं जरा-सी बरसात भी व्यापक विनाश का कारण बन जाएगी। इसी विश्वास के साथ मै आपको अपने सुझाव प्रेषित कर रहा हूँ।
1. सड़कों के किनारे जो पेड़ लगाए जाते हैं वे यूकेलिप्टस (सफेदा) के होते हैं जो कि भूगर्भीय जल को काफी कम कर देते हैं। पुराने ज़माने में ऐसे पेड़ वहाँ लगाए जाते थे जहाँ पर दलदल होता था तो वहाँ के पानी को सुखाने के काम आता था। ये पेड़ अंग्रेजों के ज़माने में यहाँ लाये गए थे जिनकी वजह से हमारा भूगर्भीय जल काफी नीचे चला गया है। इनको हटा कर उनकी जगह टिम्बर के पेड़, फलदार पेड़, जैसे शीशम, देवदार, बरगद, कटहल, पीपल, नीम, आम, करंज,महोगनी, शहतूत, गूलर, पिलखन, जामुन, अर्जुन, इत्यादि तमाम पेड़ हैं जिनको तैयार करके लगाया जा सकता है। फलदार पौधों की वजह से बन्दरों एवं पक्षियों को उनका ठिकाना मिल जायेगा और बन्दर जो शहर में भागते हैं वे उस तरफ आकर्षित होंगे जिससे शहरों में लोग बंदरों से परेशान नहीं होंगे। और प्रशासन को बंदरों को पकड़ने के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। सरकार चाहे तो सभी पेड़ों को सडकों के किनारे पड़ने वाले गॉवों को उनकी देखभाल के लिए दे सकती है जिसकी वजह से उनकी देखभाल भी हो जाएगी। फलदार पेड़ों के फलों को सरकार देखभाल करने वाले ग्रामीणों को दे दे और लकड़ी को खुद के लिए रखे। इसकी वजह से पेड़ों की देखभाल के साथ साथ पर्यावरण भी स्वच्छ रहेगा और वायुमण्डल में ऑक्सीज़न की मात्रा भी बढ़ेगी।
2. वर्तमान में सड़कों के किनारे 20 प्रतिशत टिम्बर के पेड़ लगाए जाते हैं जबकि 80 प्रतिशत झाड़ियों वाले पौधे लगाए जाते हैं जिनसे हरियाली तो दिखाई देती है लेकिन वायुमण्डल में जो ऑक्सीजन की मात्रा मिलनी चाहिए या अन्य जो फायदे ऊपर बताये गए हैं वे नहीं होते हैं। और टिम्बर पेड़ों की अपेक्षा इनकी लाइफ भी कम होती है। यदि इसको उल्टा कर दिया जाये यानि 80 प्रतिशत टिम्बर के पेड़ और 20 प्रतिशत झाड़ वाले पेड़ लगाए जायेगे तो पर्यावरण को सुधारने में एक बहुत ही बड़ा योगदान होगा।
3. उ प्र कारखाना नियम की धारा 128 के अनुसार कारखाने में पेड़ पौधों को लगाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए लेकिन इस दिशा में कभी कोई अधिकारी रूचि नहीं दिखाता है जबकि तमाम कारखाने ऐसे हैं जहाँ पर काफी अच्छी संख्या में वृक्षारोपड़ किया जा सकता है।
नियम 128 – वृक्षारोपण – किसी कारखाने के अकुपायर (अधिभोगी), को जो अपने कारखाने में सामान्यतः १०० या अधिक श्रमिकों को कार्यरत रखते हैं , वो कारखाने के परिसर के भीतर वृक्षारोपण और रखरखाव करेगा। लगाए जाने वाले वृक्षों की संख्या, प्रकार और अभिन्यास क्षेत्र के वन अधिकारी या किसी अन्य योग्य बागवानी विशेषज्ञ द्वारा अनुमोदित किया जाएगा। [ Ins. by Noti. No. 2068/XXXVI-3-2028(F)-80-CA-1948-Rule-1950-AM-50-1982, dt. 25.11.1982, published in the U.P. Gazette, Extra., dt. 25.11.1982 (w.e.f. 25.11.1982). ]
लेकिन कभी भी आज तक किसी भी निरीक्षण में किसी भी अधिकारी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया, न ही कभी इस दिशा में विभाग द्वारा प्रयास किये गए।
4. अन्य और भी कई अधिनियम ऐसे हैं जिसमे कारखानों में एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में वृक्षारोपड़ करना सुनिश्चित किया गया है। यह भी हो सकता है कि कोई भी लाइसेंस लेने के साथ यह शर्त लगानी होगी की आपको इतने वर्षों में इतने पेड़ तैयार करने हैं अन्यथा आपका लाइसेंस स्वतः निरस्त कर दिया जायेगा। हर नगर निकाय एवं प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करना होगा कि हर मकान एवं किसी भी तरह की बिल्डिंग के नक़्शे पास करते समय केवल इस बात का ध्यान ही न रखा जाये अपितु इस विषय पर सख्ती की जाये। एवं हर प्राधिकरण एवं निकाय में इसका प्रावधान सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
5. हर विभाग को वृक्षारोपड़ का लक्ष्य हर वर्ष दिया जाता है तथा उनको पेड़ भी मुहैया करवाए जाते हैं। हर विभाग पेड़ों को कागज पर लगा हुआ दिखाकर इतिश्री भी कर लेते हैं। लेकिन इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता है की वो पेड़ कहाँ लगाए गए हैं तथा क्या जहाँ पर पेड़ लगाए गए हैं वहां पर उनकी देखभाल करने वाला कोई है या सिर्फ उनको लगाकर मरने के लिए छोड़ दिया गया है। क्योंकि जिस प्रकार से प्रत्येक वर्ष पेड़ लगाने के दावे किये जाते हैं यदि वास्तव में उतने पेड़ लगाए जाते तो वस्तुस्थिति कुछ और ही होती। अतः प्रत्येक विभाग का सोशल ऑडिट होना चाहिए ताकि यह मालूम चले की किस विभाग ने कितने पेड़ कब और कहाँ लगाए हैं तथा उनकी वर्तमान में क्या स्थिति है ? पेड़ों पर बराबर नजर रखनी होगी की कितने पेड़ जिन्दा हैं जो मर गए हैं उसका क्या कारण था उस पर विचार करना होगा और उस कमी को दूर करना होगा इसके साथ ही पेड़ों की जियो टैगिंग सुनिश्चित की जानी चाहिए न की सिर्फ कागजों पर। नदियों के किनारे बरगद, भारतीय अंजीर, पीपल, कदम्ब, शिवन, अर्जुन, मनवेल, बांस, नीम, करंज, सुनहरा बांस और कंचन के पेड़ लगाए जाने चाहिये, न की झाड़ वाले पौधे। प्रत्येक विभाग का सोशल ऑडिट किसी तृतीय पक्ष एन.जी.ओ. या किसी अन्य सक्षम व्यक्ति से करवाया जाना सुनिश्चित करना होगा।
6. अधिकांश कारखानों में जल संशोधन संयंत्र सिर्फ खाना-पूर्ति हेतु लगा है जिसका कोई प्रयोग नहीं है क्योंकि वह काम नहीं करता है। ऐसे जल संशोधन संयंत्र का कोई फायदा नहीं है जिससे नदियाँ दूषित होती रहें। इसके लिए हमें एक ऐसा प्लान बनाना होगा ताकि इसकी लागत कम आये एवं इसका रखरखाव भी सस्ता एवं आसान हो ताकि यह सभी की जेब पर भारी न पड़े। क्योंकि छोटे कारखाना मालिक इसको सिर्फ महँगा होने की वजह से नहीं लगाते हैं अतः इस दिशा में विचार किया जाये की हम क्या अच्छा विकल्प दे सकते हैं। इसके साथ ही अति
खतरनाक एवं खतरनाक श्रेणी के कारखानों पर विशेष ध्यान दिया जाये चाहे वहाँ पर मात्र दो आदमी कार्य करते हों और वह कारखाना अधिनियम के दायरे में न आता हो।
जैसे बहुत से डाई के कारखाने जो छोटे छोटे घरों में मात्र 4- 5 लोगों के साथ चल रहे हैं लेकिन उनके ऊपर कारखाना अधिनियम न लागू होने के कारण कोई सख्ती उनके ऊपर नहीं होती है। लेकिन वे सबसे अधिक प्रदूषण करते हैं तो इसके लिए सुझाव है की ऐसे लोगों को एक जगह पर समूह बनाकर कार्य करने की जगह प्रदान की जाये तथा इनको रजिस्टर किया जाये तथा एक बड़ा (common) जल संशोधन संयत्र लगाया जाये ताकि सभी का दूषित जल स्वच्छ होकर निकले। इस तरीके से छोटे कारखाना मालिकों पर बोझ भी नहीं पड़ेगा इसके साथ ही भूगर्भ जल, नदियाँ, तालाब और पर्यावरण को बचाने में भी सहयोग मिलेगा।
7. वृक्षारोपण मिट्टी के क्षरण को रोकता है, क्योंकि वृक्ष की जड़ें मिट्टी को एक साथ कस कर रखती है और इससे यह सुनिश्चित होता है कि मिट्टी अपनी जगह पर रहती है। मृदा क्षरण चिंता का एक प्रमुख कारण है क्योंकि मनुष्य को अच्छी फसलों के लिये गुणवत्ता वाली मिट्टी की ज़रूरत होती है जो यह सुनिश्चित करता है कि जमीन के अंदर तक पहुंचने से पहले बारिश के पानी को अवशोषित करने के लिए पर्याप्त मिट्टी होनी चाहिए, साथ ही इससे बारिश का पानी भी फिल्टर हो जाता है। अगर मिट्टी में मजबूती नहीं होती है तब पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा बना रहता है। हमें नदियों और तालाबों के किनारे अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिये। ताकि मिट्टी का कटाव न हो और बाढ़ को रोकने में भी मदद मिले।

8. एक अभियान ऐसा चलना चाहिए जिसमें मशहूर फ़िल्मी हस्तियों या अन्य सितारों को जोड़कर आन्दोलन चलाया जाये ताकि आम जनमानस का झुकाव भी पर्यावरण संरक्षण की तरफ बढे।
और लोग इन लोगों से प्रेरणा लें। इसके साथ ही राजनेताओं एवं क्षेत्रीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को इसकी जिम्मेवारी देनी सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही यह भी सुनुश्चित करना होगा की पार्टी का पद या चुनाव का टिकट उसी को मिलेगा जिसने अपने क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष कार्य किया होगा। इससे आम जनमानस की सहभागिता भी सुनिश्चित होगी। और जब आम जनमानस जुड़ेगा तो इस दिशा में सफलता मिलना तय है।

9. किसी भी परीक्षा,साक्षात्कार में पर्यावरण संरक्षण को वरीयता दी जाये। जिसने भी अपने क्षेत्र में कार्य किया होगा तो उस कार्य का का सत्यापन क्षेत्र के वन अधिकारी या जिलाधिकारी को सत्यापित करना होगा। प्रत्येक कक्षा में इस विषय का एक आवश्यक विषय होना चाहिए और यह विषय प्राथमिक कक्षा से ही होना चाहिए ताकि बच्चों को इसका महत्त्व पता चले और वे इस तरफ जागरूक हों। बच्चों को भी प्रेरित करना चाहिए की वे पेड़ लगाएं या कोई अन्य कार्य जो इसी विषय से जुड़ा हो करें ताकि उनको इस विषय में जानकारी के साथ इसका महत्त्व पता चले और ऐसे बच्चों को कुछ अतिरिक्त मार्क देकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। लेकिन साथ में यह भी सुनिश्चित करना चाहिए की वे पेड़ जो लगाए गए हैं वे सुरक्षित रहे और उनका सोशल ऑडिट होना चाहिए।
10. सभी एनजीओ,अन्य धार्मिक या सामाजिक संगठनों द्वारा प्रत्येक वर्ष लाखों पेड़ लगाने के दावे किये जाते हैं जो मीडिया में सुर्खियां बटोरते हैं. उनकी भी पड़ताल होनी चाहिए क्योंकि तमाम स्वयंभू ग्रीन मैन, ट्रीमैन, वाटर मैन, पॉंड्स मैन बढ़ते जा रहे हैं लेकिन हरियाली बढ़ने के बजाय कम हो रही है या वहीँ की वहीँ है। यह एक सोचनीय विषय है और ऐसे लोगों का भी सोशल ऑडिट होना चाहिये क्योंकि ऐसे लोग वृक्षारोपड़ के समय प्रशासन की आँख में धूल झोंक कर
पौधे निःशुल्क ले लेते हैं और फिर उन्हें सस्ते दामों पर नर्सरियों में बेच देते हैं। वे इससे बिजनेस कर रहे हैं।
यदि एक लाख पेड़ भी यदि किसी जगह लग जायेंगे तो वह अपने आप लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित करेंगे। लेकिन सिर्फ कागजों में पेड़ लगाने से हरियाली कभी नहीं आएगी। अतः सोशल ऑडिट के साथ अन्य माध्यम से इनके भी ऑडिट समय समय पर होते रहने चाहिए।
11. पुनवनरोपण(वनीकरण) पर जोर देना होगा और इसे तेजी से करवाना होगा, मतलब दोबारा से जंगल में कटे हुये वृक्षों की जगह नए वृक्षों को लगाना होगा। जब हम सेलेक्टिंग कटाई के द्वारा, या आग लग जाने के कारण जले हुए वृक्षों की जगह कोई नया पेड़ लगाते है तो उसे ही पुनवनरोपण कहते है, जिससे प्रकृति में संतुलन बना रहता है।
12. ट्री ट्रांसलोकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत पेड़ों को जड़ सहित एक जगह से हटाकर दूसरी जगह पर लगाया जाता है। पेड़ों को बचाने का मतलब है पर्यावरण को बचाना. इसीलिए पेड़ों को काटने का विरोध हो रहा है। अगर हमें शहरीकरण के लिए पेड़ों को हटाना है, तो काटने से बेहतर है कि उन्हें रिलोकेट किया जाए। इस दौरान काफी सावधानी बरतनी पड़ती है. पेड़ के चारों ओर एक मीटर के दायरे में तीन फीट गड्ढा खोदा जाता है और पेड़ को जड़ सहित निकालकर दूसरी जगह ले जाकर लगाया जाता है. इस दौरान पेड़ की जड़ों पर ‘रूट प्रमोटिंग हार्वेस्ट’ केमिकल लगाया जाता है, ताकि पेड़ अपनी नई जगह पर पल-बढ़ सके.”
“पेड़ों को रिलोकेट करने को लेकर जागरूकता की कमी है. इसे गंभीरता से लेना होगा और दिल्ली ही क्यों, देशभर में पेड़ों को रिलोकेट किया जा सकता है. पेड़ों को काटने की जरूरत ही नहीं है, प्रशासन पेड़ों को रिलोकेट करने को लेकर टेंडर निकाले और इस तकनीक को बढ़ावा
दे. इसका विरोध भी नहीं होगा और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचेगा.” इस कार्य के लिए किसी अनुभवी को ही ठेका देना होगा अन्यथा वो पेड़ों को नष्ट कर देगा।

सत्येन्द्र सिंह
(पर्यावरणविद)
सदस्य- जिला गंगा संरक्षण समिति -ग़ाज़ियाबाद